श्रीकृष्ण, विष्णु के आठवें अवतार माने गए हैं। कन्हैया, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता है। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्जित महान पुरुष थे। उनको इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष, युगपुरुष या युगावतार का स्थान दिया गया है। कृष्ण के समकालीन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमदभागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तृत रूप से लिखा गया है। भगवदगीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है जो ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इस उपदेश के लिए कृष्ण को जगतगुरु का सम्मान भी दिया जाता है।
कृष्ण एक ऐसे शिक्षक हैं जिन्होंने भगवद गीता में जीवन के मूल सिद्धांतों की शिक्षा दी चूँकि उनकी शिक्षाएँ सभी पर समान रूप से लागू होती हैं , इसलिए उन्हें जगतगुरु कहा जाता है। गीता में, कृष्ण की पहचान ईश्वर, सर्वोच्च भगवान से की गई है। सुकर्मों से संसार के प्रेरणास्त्रोत, करोड़ों को जन्म और मरण के बंधनों मुक्त कराने वाले, जगद्गुरु कृष्ण से बढ़कर कोई गुरु नहीं है।वे पूर्णावतार, संपूर्ण पुरूष हैं। कृष्ण ने अर्जुन को अपना माध्यम बना के जीवन को उत्कृष्ट बनाने का ज्ञान गीता के रुप में दिया, क्योंकि गीता एक मात्र कल्याणकारी व सुखमय मार्गं है । जीवन जीने का कृष्ण ही मुरली मनोहर है , माखनचोर है, गोपियों के चितचोर है, तो द्रोपदी के सखा है, रासरचैया है तो राधा के प्रिय सखा, रूक्मिणी के पति तो, यशोदा के बेटे, वे ही आदि और अंत है…..
|| वसुदेव सुतं, देवकंस चाणूरमर्दनं,
देवकी परमानंदम कृष्णं वंदे जगद्गुरुमं ||
|| जय श्री कृष्णा ||
– (सौ. माधुरी यादव)